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शस्यावर्तन /फसल चक्र /क्रॉप रोटेशन)CORPS ROTATION

  शस्यावर्तन    / फसल चक्र   विभिन्न फसलों को किसी निश्चित क्षेत्र पर , एक निश्चित क्रम से , किसी निश्चित समय में बोने को   सस्य आवर्तन  ( सस्यचक्र   या   फ़सल चक्र  ( क्रॉप रोटेशन)) कहते हैं। इसका उद्देश्य पौधों के भोज्य तत्वों का सदुपयोग तथा भूमि की भौतिक , रासायनिक तथा जैविक दशाओं में संतुलन स्थापित करना है। यानि एक वर्ष में एक खेत में दो या दो से अधिक फसलो को एक के बाद एक योजना बनाकर उगाना. फसल चक्र को प्रभावित करने वाले कारक : जलवायु सम्बन्धी कारक :   जलवायु के मुख्य कारक तापक्रम वर्षा वायु एवं नमी है. यही कारक जलवायु को प्रभावित करते है जिससे फसल चक्र भी प्रभावित होता है. जलवायु के आधार पर फसलो को तीन वर्गों में मुख्या रूप से बांटा गया है जेसे खरीफ. रबी , जायद. भूमि सम्बन्धी कारक :   भूमि सम्बन्धी कारको में भूमि की किस्म मृदा उर्वरता मृदा प्रतिक्रीया जल निकास मृदा की भौतिक दशा आदि आते है. ये सभी कारक फसल की उपज पे गहरा प्रभाव डालते है. सिंचाई के साधन : सिंचाई जल की उपलब्धता के अनुसार ही फसल चक्र अपनाना चाहिये .यदि ...

मृदा अपरदन से समस्याएँ, मृदा संरक्षण

  मृदा संरक्षण  (Soil conservation) से तात्पर्य उन विधियों से है , जो   मृदा   को अपने स्थान से हटने से रोकते हैं। संसार के विभिन्न क्षेत्रों में   मृदा अपरदन   को रोकने के लिए भिन्न-भिन्न विधियाँ अपनाई गई हैं। मृदा संरक्षण की विधियाँ हैं - वनों की रक्षा ,  वृक्षारोपण , बांध बनाना , भूमि उद्धार , बाढ़ नियंत्रण , अत्यधिक चराई पर रोक , पट्टीदार व सीढ़ीदार कृषि , समोच्चरेखीय जुताई तथा शस्यार्वतन। मृदा   एक बहुत ही महत्वपूर्ण संसाधन है। यह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विभिन्न प्रकार के जीवों का भरण-पोषण करती है। इसके अतिरिक्त , मृदा-निर्माण एक बहुत ही धीमी प्रक्रिया है।   मृदा अपरदन से समस्याएँ मृदा अपरदन   की प्रक्रिया ने प्रकृति के इस अनूठे उपहार को केवल नष्ट ही नहीं किया है अपितु अनेक प्रकार की समस्याएँ भी पैदा कर दी है। मृदा अपरदन से   बाढ़ें   आती हैं। इन बाढ़ों से सड़कों व रेलमार्गों , पुलों , जल विद्युत परियोजनाओं , जलापूति और पम्पिंग केन्द्रों को काफी हानि पहुँचती है। मृदा संरक्षण की विधियाँ विधियों का विवरण नीचे ...