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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महावीर जैन धर्म/ MPPSC2020

महावीर   जैन धर्म जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है , जो सभी जीवों   को  आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है।भगवान   महावीर   जैन   धर्म   के चौंबीसवें (२४वें)   तीर्थंकर   है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 540 वर्ष  पूर्व) ,  वैशाली   के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था।कुण्डलपुर में   इक्ष्वाकु वंश   के क्षत्रिय   राजा सिद्धार्थ   और   रानी   त्रिशला   के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से   उनका नाम वर्धमान रखा गया था। जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्धमान , वीर , अतिवीर , महावीर और सन्मति ऐसे पांच   नामों का उल्लेख है महावीर स्वामी की मृत्यु   पावा   में 72 वर्ष की आयु में 468 ई.पू. में हुई थी। पाँच व्रत ·       ...

अरस्तु यूनानी दार्शनिक /अरस्तू का राज्य की उत्पत्ति व प्रकृति का सिद्धांत

अरस्तु  (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे । वे   प्लेटो   के शिष्य व   सिकंदर   के गुरु थे। उनका जन्म   स्टेगेरिया   नामक नगर में हुआ था   ।     अरस्तू ( 384-322 ईपू) , एक ग्रीक दार्शनिक थे। वें दुनिया के बड़े विचारकों में से एक थे।   उनके लेखन के घेरे में विचारों के सभी क्षेत्र शामिल है। अरस्तू का मानना था कि पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में है और केवल चार तत्वों से बनी है: मिटटी , जल , वायु , और अग्नि। उनके   मतानुसार सूरज , चाँद और सितारो जैसे खगोलीय पिंड परिपूर्ण और ईश्वरीय है और सारे पांचवें तत्व से बने है जिसे वें ईथर कहते थे।। इस प्रकार अरस्तु के जीवन पर मकदूनिया के   दरबार का काफी गहरा प्रभाव पड़ा था। उनके पिता की मौत उनके बचपन में ही हो गये थी। 17 वर्षीय अरस्तु को उनके अभिभावक ने शिक्षा पुरी करने के लिए बौद्धिक शिक्षा केंद्र एथेंस भेज दिया। वो वहा पर बीस वर्षो तक प्लेटो से शिक्षा पाते रहे।          पढाई के अंतिम वर्षो में वो स्वयं अकादमी में पढाने लगे। अरस...