महावीर जैन धर्म/ MPPSC2020
जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म
तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों
पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य
क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था।कुण्डलपुर में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और
रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल
तेरस को हुआ था। ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से
उनका नाम वर्धमान रखा गया था। जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच
नामों का उल्लेख है महावीर स्वामी की
मृत्यु पावा में 72 वर्ष की आयु में 468 ई.पू. में हुई थी।
पाँच व्रत
·
सत्य ― सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा
तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता
है।
·
अहिंसा – इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच
इंद्रीयों वाले जीव) है उनकी हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न
रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का
संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।
·
अचौर्य - दुसरे के वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण करना जैन
ग्रंथों में चोरी कहा गया है।
·
अपरिग्रह – परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या
निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने
की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह का
माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
·
ब्रह्मचर्य- महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत
ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या
में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते
हैं।
जैन मुनि, आर्यिका इन्हें पूर्ण रूप से
पालन करते है, इसलिए
उनके महाव्रत होते है और श्रावक, श्राविका इनका एक देश पालन करते
है, इसलिए
उनके अणुव्रत कहे जाते है।
दस धर्म
जैन
ग्रंथों में दस धर्म का वर्णन है। पर्युषण पर्व, जिन्हें दस लक्षण भी कहते है के
दौरान दस दिन इन दस धर्मों का चिंतन किया जाता है।
क्षमा के
बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता
हूँ। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं
सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा
माँगता हूँ। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूँ।'
वे यह भी
कहते हैं 'मैंने
अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पाप वृत्तियाँ
प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियाँ की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियाँ विफल
हों। मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।'
धर्म
सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। महावीरजी कहते हैं जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।
भगवान
महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया।
त्याग और संयम, प्रेम और
करुणा, शील और
सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था।
हमारा जीवन धन्य हो जाए यदि हम भगवान महावीर के इस छोटे से उपदेश जिओ और जीने दो के सिद्धान्त का ही सच्चे मन से
पालन करने लगें कि संसार के सभी छोटे-बड़े जीव हमारी ही तरह हैं, हमारी आत्मा का ही
स्वरूप हैं।
विशेष तथ्य: भगवान
महावीर
§ भगवान महावीर के
जिओ और जीने दो के सिद्धान्त को जन-जन तक पहुंचाने के लिए जैन धर्म के अनुयायी
भगवान महावीर के निर्वाण दिवस को हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को त्यौहार की तरह
मनाते हैं, इस अवसर पर वह दीपक प्रज्वलित करते हैं।
§ जैन धर्म के
अनुयायियों के लिए उन्होंने पांच व्रत दिए, जिसमें अहिंसा, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह बताया गया।
§ अपनी सभी
इंन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेने की वजह से वे जितेन्द्रिय या ‘जिन’ कहलाए।
§ जिन से ही जैन धर्म
को अपना नाम मिला।
§ जैन धर्म के गुरूओं
के अनुसार भगवान महावीर के कुल ११ गणधर थे, जिनमें गौतम स्वामी
पहले गणधर थे।
§ बिहार के पावापूरी
जहां उन्होंने अपनी देह को छोड़ा, जैन अनुयायियों के
लिए यह पवित्र स्थल की तरह पूजित किया जाता है।
§ भगवान महावीर की
मृत्यु के दो सौ साल बाद, जैन धर्म श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदायों में बंट
गया।
§ दिगम्बर सम्प्रदाय
के जैन संत वस्त्रों का त्याग कर देते हैं, इसलिए दिगम्बर
कहलाते हैं जबकि श्वेताम्बर सम्प्रदाय के संत श्वेत वस्त्र धारण करते हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें