इलाहाबाद में रेलवे स्टेशन पर भगदड़ 10 फरवरी 2013, इलाहाबाद MPPSC MAINS EXAM
इलाहाबाद में रेलवे स्टेशन पर भगदड़ 10 फरवरी 2013, इलाहाबाद
10 फरवरी 2013, इलाहाबाद, विश्व प्रसिद्ध
कुम्भ मेले के दौरान इलाहाबाद में रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 36 लोग मारे गए
और कम से कम 39 लोग घायल हो गए.
इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म नंबर छह पर उस
वक़्त हुआ जब हज़ारों की संख्या में कुंभ में अमावस्या के मौक़े पर स्नान करके लौट
रहे श्रद्धालु स्टेशन पर जमा थे.
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़ प्लेटफ़ॉर्म संख्या छह
की ओर जाने वाली सीढ़ियों पर अचानक भगदड़ मच गई. हालांकि पहले ख़बर आ रही थी कि
फुटओवर ब्रिज की रेलिंग टूटने से ये हादसा हुआ
शाही स्नान का जो घाट अखाड़ों के नागा साधुओं के लिए
आरक्षित था, वहाँ भारी भीड़ जमा हो गई थी, जिसे घुड़सवार पुलिस की मदद से बड़ी मुश्किल से ख़ाली कराया
जा सका.
यातायात नियंत्रण की तमाम योजना के बावजूद एक साथ
इतनी भारी भीड़ घाटों पर आने देने का कोई औचित्य नही था.
और फिर घाटों पर भीड़ कम करने के लिए जितनी तेज़ी से
लोगों को बाहर निकाला गया , उस समय भी शायद
यह ध्यान नही दिया गया कि स्टेशन के अंदर उतने ही लोग जाने दिया जाए जितनी क्षमता
है.
तालमेल की कमी
शायद रेल प्रशासन और स्थानीय पुलिस में
पर्याप्त तालमेल नही था.
राजकीय रेलवे पुलिस की ज़िम्मेदारी थी
कि स्टेशन पर भीड़ नियंत्रण का बंदोबस्त होता.
आगे चलकर शायद यह भी सोचना पड़े कि एक
शहर में एक दो दिन के बीच इतनी बड़ी संख्या में लोगों को आने के लिए प्रोत्साहित
करने की कितनी आवश्यकता है.
उपलब्ध स्थान के अनुसार ही भीड़ शहर
में आए इसका कोई उपाय सोचना होगा.
कई लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि जब
दुनिया का सबसे बड़ा कुम्भ मेला चल रहा था , पुलिस और
प्रशासनिक अधिकारियों के एक साथ इतनी बड़ी संख्या में तबादलों की क्या ज़रुरत थी?
पहला कारण- भारी संख्या में लोगों का पहुंचना- मौनी अमावस्या
के कारण संगम में लगभग (अनुमान के मुताबिक) तीन करोड़ लोग पहुंचे थे और शाही स्नान
के दौरान भी लोगों की संख्या इतनी अधिक हो गई थी कि पुलिस को नियंत्रण में
मुश्किलें आ रही थीं. जानकारों के अनुसार लोगों को इलाहाबाद से बाहर प्रतापगढ़ या
जौनपुर जैसी जगहों पर ही रोका जाना चाहिए था. शाही स्नान के दौरान भी हल्का लाठी
चार्ज हुआ था. स्थिति की गंभीरता को उसी समय समझा जाना चाहिए था.
दूसरा कारण- रेलवे स्टेशन पर क्षमता से अधिक भीड़- मेला क्षेत्र
में जैसे ही लोग बढ़े तो प्रशासन का फोकस ये रहा कि लोगों को जल्दी से जल्दी मेला
क्षेत्र से बाहर निकाला जाए और लोग वापस लौटें. नतीजा ये हुआ कि लोग रेलवे स्टेशन
की तरफ गए. स्टेशन के पास आम तौर पर बाड़े बनाए जाते हैं ताकि एक साथ बहुत अधिक
लोग पहुंच न पाए. लोगों को चौराहे पर भी नहीं रोका गया और न ही लोगों को दूसरी तरफ
डायवर्ट ही किया गया. रेलवे स्टेशन की क्षमता से अधिक लोग वहां पहुंच गए.
तीसरा कारण- तालमेल का अभाव- पहली नज़र में
ऐसा लगता है कि प्रशासन में तालमेल की कमी थी. मेला पुलिस, स्थानीय पुलिस और रेलवे पुलिस के बीच तालमेल नहीं दिखा
जिसके कारण ही एकबारगी मेला क्षेत्र में भी और उसके बाद रेलवे स्टेशन पर भी इतने
लोग एक साथ पहुंच गए. अगर तालमेल होता तो लोगों को कई अलग अलग जगहों पर रोका जा
सकता था और भीड़ को एकजगह जमा होने से रोका जा सकता था.
चौथा कारण- रेलवे पुलिस का बर्ताव- मेला के दौरान
जिस तरह से स्थानीय पुलिस को लोगों के साथ संयम बरतने और अच्छा व्यवहार करने की
ट्रेनिंग दी गई थी वैसी कोई ट्रेनिंग रेलवे पुलिस को नहीं दी गई. जिसके कारण पुलिस
ने लोगों को प्यार से डायवर्ट करने की जगह उन्हें भगाना शुरु किया. इससे लोग
नाराज़ भी हुए और अफरा तफरी भी मची.
पांचवां कारण- आपातकालीन योजना लागू नहीं होना- जब भी ऐसी कोई
आपात स्थिति आती है तो प्रशासन के पास दो तीन प्लान बने होते हैं. जिसे आपात योजना
कहते हैं लेकिन इस घटना में लगा नहीं कि आपात योजना पर अमल हुआ. घटना के दो घंटे
बाद तक एंबुलेंस तक स्टेशन पर नहीं पहुंचा था. स्ट्रेचर तक स्टेशन पर नहीं थे और
यहां तक कि घायलों को कपड़ों में लाद कर अस्पताल पहुंचाया गया. अगर आपात योजना को
लागू किया गया होता ठीक से कुछ जानें ज़रुर बच सकती थीं.
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