MPPSC IV paper ram mohan rai
राम मोहन रॉय
19वीं शताब्दी के शुरुआत में, भारतीय समाज कई सारी सामाजिक बुराईयों से घिरा हुआ था जैसे सती
प्रथा, जाति प्रथा, धार्मिक अंधविश्वास आदि। राजा राम मोहन
रॉय पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ऐसी अमानवीय प्रथाओं को पहचाना और इनके खिलाफ लड़ने
का प्रण किया। इन्हें भारतीय पुनर्जागरण का शिल्पकार और आधुनिक भारत का पिता माना
जाता है।
राम मोहन रॉय का जन्म बंगाल के हुगली
जिले के राधानगर में 22 मई 1772 को हुआ तथा इनका संबंध पारंपरिक ब्राह्मण परिवार से था। इनके पिता
रामाकांत रॉय और माता त्रिवानी रॉय थी; इनके पिता तब बंगाल के नवाब के न्यायालय में अच्छे पद पर थे।
इन्होंने अपनी शिक्षा पटना और वाराणसी में पूरी की। 1803 से लेकर 1814 के समय तक इन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनी
में भी काम किया। राजा राम मोहन रॉय की शादी बेहद कम उम्र में ही हो गयी थी और 10 वर्ष की उम्र तक आते-आते ये तीन बार परिणय सूत्र में बंधे। 27 सितंबर 1833 को इंग्लैंड के ब्रिस्टल में इनका निधन
हो गया।
कार्य और सुधार:
राजा राम मोहन रॉय बेहद खुले विचारों
के थे साथ ही उनका दिमाग बहुत जिरह करने वाला था। वे पश्चिमी प्रगतिवादी सोच से
बहुत ज्यादा प्रभावित थे तथा वे कई धर्मों के अध्यापन में भी बहुत निपुण थे। वे
इस्लाम के एकेश्वरवाद, सूफ़ी दर्शनशास्त्र के तत्वों से, ईसाइयत की आचारनीति और नैतिकता से और उपनिषद् के वेदांता दर्शन से
प्रभावित थे।
उनका मुख्य उद्देश्य उन बुराईयों को
मिटाने की ओर था जो हिन्दू समाज के चारों ओर फैली हुई थी जैसे:
- उन्होंने हिन्दूओं की मूर्ति पूजा की आलोचना की
और वेद के पद से अपनी बात को साबित करने की कोशिश की।
- लेकिन वो खास योगदान जिसके लिये राजा राम मोहन
रॉय याद किये जाते है-लगातार सती प्रथा को जड़ से खत्म करने के लिये किया गया
उनका प्रयास था।
जब इनके बड़े भाई की मृत्यु होने पर
इनकी भाभी को सती कर दिया गया था, इस घटना ने इनके
मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर डाला, तब राजा राम मोहन रॉय ने इसके खिलाफ लड़ने का निश्चय किया। इस क्रूर प्रथा
को खत्म करने के लिये उन्होंने एक आंदोलन की शुरुआत की और साथ ही ब्रिटिश सरकार को
इसके खिलाफ कानून बनाने के लिये राजी कर लिया। उस समय के गवर्नर जनरल लार्ड विलियम
बेन्टिक द्वारा 1829 में बंगाल सती प्रथा रेग्युलेशन एक्ट
पारित हुआ।
- 20
अगस्त 1828 को
राजा राम मोहन रॉय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की, जो
बाद में ब्रह्मों समाज बना, इस संगठन का कार्य एक ऐसा
आंदोलन चलाना था जो एकेश्वरवाद को बढ़ावा दे और मूर्ति पूजा की आलोचना करे; समाज
को ब्राहमणवादी सोच से और महिलाओं को उनकी दयनीय दशा से बाहर निकालना आदि था।
दूसरे महत्वपूर्ण
कार्य:
- 1820
में, इन्होंने
एक किताब प्रकाशित की जीसस का ज्ञान: शांति और खुशी का मार्गदर्शक; इसमें
राम मोहन ने ईसाइयों की सरलता और नैतिकता को बताया है।
- आम लोगों के बीच अपने विचारों और कल्पनाओं को
फैलाने के लिये वर्ष 1821
में प्रज्ञा चाँद और संवाद कौमुदी नाम के दो
समाचार पत्रिका की शुरुआत की।
- इन्होंने परसियन समाचार पत्रिका की भी शुरुआत
की।
- इन सब के अलावा, रॉय
ने एक वेदांता और कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की।
समाज के लिये राम
राम मोहन रॉय का योगदान
आधुनिक भारत का विचार पहली बार राजा
राम मोहन रॉय के कार्य और प्रयासों ने दिया जो चिरकालीन ब्रिटिश शोषण और सामाजिक
बुराई के दोहरे बोझ के तहत घूम रहा था। शायद भारत के स्वतंत्रता के लंबे संघर्ष की
ताजा शुरुआत राजा राम मोहन के आधुनिक विचारों को फैलाने से हो चुकी थी। इस वजह से
आधुनिक भारत को बनाने में उनका योगदान आधारशिला की तरह है।
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