राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal - NGT)
राष्ट्रीय
हरित अधिकरण
राष्ट्रीय हरित
अधिकरण (National Green Tribunal - NGT) की स्थापना 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (National Green Tribunal
Act), 2010 के तहत की गई थी। राष्ट्रीय हरित
अधिकरण की स्थापना राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के तहत दिनांक 18.10.2010 को पर्यावरण बचाव और वन संरक्षण और अन्य प्राकृतिक
संसाधन सहित पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन और
क्षतिग्रस्त व्यक्ति अथवा संपत्ति के लिए अनुतोष और क्षतिपूर्ति प्रदान करना और
इससे जुडे़ हुए मामलों का प्रभावशाली और तीव्र गति से निपटारा करने के लिए किया
गया है।
यह एक
विश्ष्टि निकाय है जो कि पर्यावरण विवादों बहु-अनुशासनिक मामलों सहित, सुविज्ञता से संचालित करने के लिए सभी आवश्यक तंत्रों से
सुसज्जित है। यह अधिकरण 1908 के नागरिक
कार्यविधि के द्वारा दिए गए कार्यविधि से प्रतिबद्ध नहीं है लेकिन प्रकृतिक न्याय
सिद्धांतों से निर्देशित होगा। NGT की संरचना
§ NGT में अध्यक्ष, न्यायिक सदस्य
और विशेषज्ञ सदस्य शामिल होते हैं, जिनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता है और किसी भी सदस्य को पुनः पद पर नियुक्त
नहीं किया जा सकता।
§ अध्यक्ष की
नियुक्ति भारत के मुख्य
न्यायाधीश के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
§ न्यायिक और
विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति के लिये केंद्र सरकार द्वारा एक चयन समिति बनाई जाती
है।
§ यह आवश्यक है कि
अधिकरण में कम-से-कम 10 और अधिकतम 20 पूर्णकालिक न्यायिक सदस्य एवं विशेषज्ञ सदस्य
हों।
शक्तियाँ और अधिकार
क्षेत्र
अधिकरण
का न्याय क्षेत्र बेहद विस्तृत है और यह उन सभी मामलों की सुनवाई कर सकता है
जिनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण शामिल हो। इसमें पर्यावरण से
संबंधित कानूनी अधिकारों को लागू करना भी शामिल है।
§ एक वैधानिक निकाय होने के कारण NGT के पास अपीलीय
क्षेत्राधिकार है और जिसके तहत वह सुनवाई कर सकता है।
§ नागरिक
प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure 1908) में उल्लिखित
न्यायिक प्रक्रिया का पालन करने के लिये NGT बाध्य नहीं है।
§ किसी भी आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय को
देते समय यह यह आवश्यक है कि NGT उस पर सतत् विकास (Sustainable
Development), निवारक (Precautionary) और प्रदूषक भुगतान (Polluter Pays), आदि सिद्धांत लागू करे।
§ अधिकरण अपने
आदेशानुसार...
o पर्यावरण
प्रदूषण या किसी अन्य पर्यावरणीय क्षति के पीड़ितों को क्षतिपूर्ति प्रदान कर सकता
है।
o क्षतिग्रस्त
संपत्तियों की बहाली अथवा उसका पुनर्निर्माण करवा सकता है।
§ NGT द्वारा दिए गए
को आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय का निष्पादन न्यायालय के
आदेश के रूप में करना होता है।
§ NGT अधिनियम में
नियमों का पालन न करने पर दंड का प्रावधान भी किया गया है :
o एक निश्चित समय
के लिये कारावास जिसे अधिकतम 3 वर्षों के लिये बढ़ाया जा सकता है।
o निश्चित आर्थिक
दंड जिसे 10
करोड़ रुपए
तक बढ़ाया जा सकता है।
o कारावास और
आर्थिक दंड दोनों।
§ NGT द्वारा दिये गए
आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च
न्यायालय में 90 दिनों के भीतर अपील की जा सकती है।
§ NGT पर्यावरण से
संबंधित 7 कानूनों के तहत
नागरिक मामलों की सुनवाई कर सकता है:
1. जल
(प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974
2. जल
(प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977
3. वन
(संरक्षण) अधिनियम, 1980
4. वायु
(प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981
5. पर्यावरण
(संरक्षण) अधिनियम, 1986
6. पर्यावरण
(संरक्षण) अधिनियम, 1986
7. जैव-विविधता
अधिनियम,
2002
§ उपरोक्त कानूनों
के तहत सरकार द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय को NGT के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।
NGT का महत्त्व
§ विगत वर्षों में
NGT ने पर्यावरण के
क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और जंगलों में वनों की कटाई से लेकर
अपशिष्ट प्रबंधन आदि के लिये सख्त आदेश पारित किये हैं।
§ NGT ने पर्यावरण के
क्षेत्र में न्याय के लिये एक वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र (Alternative Dispute
Resolution Mechanism) स्थापित करके नई दिशा प्रदान की है।
§ इससे उच्च
न्यायालयों में पर्यावरण संबंधी मामलों का भार कम हुआ है।
§ पर्यावरण संबंधी
मुद्दों को सुलझाने के लिये NGT एक अनौपचारिक, मितव्ययी एवं तेज़ी से काम करने वाला तंत्र है।
§ यह पर्यावरण को
नुकसान पहुँचाने वाली गतिविधियों को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
§ चूँकि अधिकरण का
कोई भी सदस्य पुनः नियुक्ति के योग्य नहीं होता है और इसीलिये वह बिना किसी भय के स्वतंत्रता-पूर्वक निर्णय
सुना सकता है।
चुनौतियाँ
दो
महत्त्वपूर्ण अधिनियमों [वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (Wildlife
Protection Act, 1972) तथा अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी अधिनियम, 2006 (Scheduled Tribes
and Other Traditional Forest Dwellers Act, 2006)] को NGT के अधिकार-क्षेत्र से बाहर रखा गया है, लेकिन इससे कई बार NGT के
काम-काज प्रभावित होता है, क्योंकि
पर्यावरण से जुड़े कई मुद्दे इन अधिनियमों के अधीन आते हैं।
§ NGT के कई निर्णयों
को उच्च न्यायालय में धारा 226 के तहत यह कहकर चुनौती दी जाती रही है
कि उच्च न्यायालय एक संवैधानिक संस्था है, जबकि अधिकरण एक वैधानिक संस्था है। यह इस अधिनियम की सबसे
बड़ी खामी है कि इसमें यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है कि किन मुकदमों
को न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है और किन को नहीं।
§ आर्थिक वृद्धि
और विकास पर प्रभाव डालने के कारण NGT के निर्णयों की समय-समय पर आलोचना होती रहती है।
§ मुआवज़े के
निर्धारण की कोई स्पष्ट विधि न होने के कारण भी अधिकरण आलोचना का शिकार हो जाता
है।
§ NGT के लिये यह
अनिवार्य है कि उसके अधीन जो भी मुकदमा आए उसका निपटारा 6 महीनों के भीतर हो जाना चाहिये, परंतु मानव और वित्तीय संसाधनों के
अभाव में NGT
ऐसा नहीं
कर पाता है।
§ NGT का न्यायिक
तंत्र भी सीमित संख्या में क्षेत्रीय पीठों (Regional Benches) के कारण बहुत
अधिक प्रभावित होता है।
NGT के महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय
§ वर्ष 2012 में स्टील
निर्माता कंपनी POSCO
ने इस्पात
संयंत्र लगाने के लिये ओडिशा सरकार के साथ एक समझौता किया था, परंतु NGT ने इसे निरस्त कर दिया, क्योंकि यह समझौता आस-पास के ग्रामीण
लोगों के हितों को प्रभावित करने वाला था। NGT के इस आदेश को स्थानीय समुदायों और जंगलों के लिये एक साहसी
कदम माना गया।
§ वर्ष 2012 में ही एक अन्य
मामले में NGT
ने खुले
में कचरा जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। इस निर्णय को भारत में ठोस अपशिष्ट
प्रबंधन से निपटने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक माना जाता
है।
§ वर्ष 2013 में उत्तराखंड
के मामले में NGT
ने
अलकनंदा हाइड्रो पावर लिमिटेड को यह आदेश दिया कि वह सभी याचिकाकर्त्ताओं को
क्षतिपूर्ति दे। इस निर्णय में NGT ने प्रदूषक भुगतान (Polluter Pays) के सिद्धांत का
पालन किया था।
§ वर्ष 2015 में NGT ने यह आदेश दिया
था कि 10 वर्षों से अधिक
पुराने सभी डीज़ल वाहनों को दिल्ली-NCR में चलने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
§ वर्ष 2017 में दिल्ली में
यमुना के खादर में आयोजित आर्ट ऑफ लिविंग फेस्टिवल को पर्यावरण के नियमों का
उल्लंघन करते हुए पाया गया था, जिसके बाद NGT ने उस पर 5 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया था।
§ वर्ष 2017 में NGT ने दिल्ली में 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक
बैग पर यह कहते हुए अंतरिम प्रतिबंध लगा दिया था कि इस प्रकार के प्लास्टिक बैग से
जानवरों की मृत्यु हो रही है और पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है।
इसमें
कोई दो राय नहीं हैं कि बहुत कम समय में NGT ने
पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है और पर्यावरण प्रहरी के रूप
में अपनी एक अलग छवि निर्मित की है। इसके बावजूद देश में हो रही विकास गतिविधियों
के साथ तालमेल स्थापित करके पर्यावरण संरक्षण हेतु NGT के दायरे को और अधिक विस्तृत करने की आवश्यकता है ताकि देश के
विकास के साथ पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा किया जा सके।
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