UPSC संघ लोक सेवा आयोग
संघ लोक सेवा आयोग
अनुच्छेद- 315. संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग
1.
इस
अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य के लिए एक
लोक सेवा आयोग होगा।
2.
दो या
अधिक राज्य यह करार कर सकेंगे कि राज्यों के उस समूह के लिए एक ही लोक सेवा आयोग
होगा और यदि इस आशय का संकल्प उन राज्यों में से प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के
सदन द्वारा या जहाँ दो सदन हैं वहाँ प्रत्येक सदन द्वारा पारित कर दिया जाता है तो
संसद उन राज्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए विधि द्वारा संयुक्त राज्य
लोक सेवा आयोग की (जिसे इस अध्याय में संयुक्त आयोग कहा गया है) नियुक्ति का उपबंध
कर सकेगी।
3.
पूर्वोक्त
प्रकार की किसी विधि में ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध हो सकेंगे जो उस विधि के
प्रयोजनों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक या वांछनीय हों।
4.
यदि किसी
राज्य का राज्यपाल संघ लोक सेवा आयोग से ऐसा करने का अनुरोध करता है तो वह
राष्ट्रपति के अनुमोदन से उस राज्य की सभी या किन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति करने
के लिए सहमत हो सकेगा।
5.
इस संविधान में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा
अपेक्षित न हो संघ लोक सेवा आयोग या किसी राज्य लोक सेवा आयोग के प्रति निर्देशों
का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे ऐसे आयोग के प्रति निर्देश हैं जो प्रश्नगत किसी
विशिष्ट विषय के संबंध में, यथास्थिति, संघ की या राज्य की आवश्यकताओं
की पूर्ति करता
अनुच्छेद- 316.
सदस्यों
की नियुक्ति और पदावधि
1.
लोक सेवा
आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति, यदि वह संघ आयोग या संयुक्त आयोग है
तो, राष्ट्रपति द्वारा और, यदि वह राज्य आयोग है तो, राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाएगी
परंतु प्रत्येक लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से यथाशक्य निकटतम आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी-अपनी नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कम से कम दस वर्ष तक पद धारण कर चुके हैं और उक्त दस वर्ष की अवधि की संगणना करने में इस संविधान के प्रारंभ से पहले की ऐसी अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण किया है।
परंतु प्रत्येक लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से यथाशक्य निकटतम आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी-अपनी नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कम से कम दस वर्ष तक पद धारण कर चुके हैं और उक्त दस वर्ष की अवधि की संगणना करने में इस संविधान के प्रारंभ से पहले की ऐसी अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण किया है।
i.
यदि आयोग
के अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है या यदि कोई ऐसा अध्यक्ष अनुपस्थिति के कारण
या अन्य कारण से अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है तो, यथास्थिति, जब तक रिक्त पद पर खंड (1) के अधीन नियुक्त कोई व्यक्ति उस पद का
कर्तव्य भार ग्रहण नहीं कर लेता है या जब तक अध्यक्ष अपने कर्तव्यों को फिर से
नहीं संभाल लेता है तब तक आयोग के अन्य सदस्यों में से ऐसा एक सदस्य, जिसे संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा
में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में उस राज्य का राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए
नियुक्त करे, उन
कर्तव्यों का पालन करेगा।
2.
लोक सेवा
आयोग का सदस्य, अपने पद
ग्रहण की तारीख से छह वर्ष की अवधि तक या संघ आयोग की दशा में पैंसठ वर्ष की आयु
प्राप्त कर लेने तक और राज्य आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में [बासठ वर्ष] की आयु
प्राप्त कर लेने तक इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करेगा।
o
परंतु –
i.
लोक सेवा
आयोग का कोई सदस्य, संघ आयोग
या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति को और राज्य आयोग की दशा में राज्य के
राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
ii.
लोक सेवा
आयोग के किसी सदस्य को, अनुच्छेद
317 के खंड (1) या खंड (3) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया
जा सकेगा।
3.
कोई
व्यक्ति जो लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में पद धारण करता है, अपनी पदावधि की समाप्ति पर उस पद पर
पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।
अनुच्छेद- 318.
आयोग के
सदस्यों और कर्मचारिवृंद की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति
संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य
आयोग की दशा में उस राज्य का राज्यपाल विनियमों द्वारा –
i.
आयोग के
सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों का अवधारण कर सकेगा; और
ii.
आयोग के
कर्मचारिवृंद के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों के संबंध में उपबंध कर
सकेगा:
परंतु
लोक सेवा आयोग के सदस्य की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए
अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद- 319.
आयोग के
सदस्यों द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के संबंध में प्रतिषेध
पद पर न
रह जाने पर –
1.
संघ लोक
सेवा आयोग का अध्यक्ष भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी भी और
नियोजन का पात्र नहीं होगा;
2.
किसी
राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या अन्य सदस्य के
रूप में अथवा किसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने
का पात्र होगा, किन्तु
भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा;
3.
संघ लोक
सेवा आयोग के अध्यक्ष से भिन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के
रूप में या किसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने का
पात्र होगा, किन्तु
भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा;
4.
किसी
राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष से भिन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के
अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य के रूप में अथवा उसी या किसी अन्य राज्य लोक सेवा
आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की
सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा।
6.
आयोग के कार्य
संविधान के अनुच्छेद 320 के अंतर्गत, अन्य बातों के साथ-साथ सिविल सेवाओं तथा पदों के लिए भर्ती
संबंधी सभी मामलों में आयोग का परामर्श लिया जाना अनिवार्य होता है। संविधान के
अनुच्छेद 320 के अंतर्गत आयोग के प्रकार्य इस प्रकार हैं:
1.
संघ के लिए सेवाओं में नियुक्ति हेतु परीक्षा आयोजित
करना
2.
साक्षात्कार द्वारा चयन से सीधी भर्ती
3.
प्रोन्नति/ प्रतिनियुक्ति/ आमेलन द्वारा अधिकारियों
की नियुक्ति
4.
सरकार के अधीन विभिन्न सेवाओं तथा पदों के लिए भर्ती
नियम तैयार करना तथा उनमें संशोधन
5.
विभिन्न सिविल सेवाओं से संबंधित अनुशासनिक मामले
भारत के राष्ट्रपति द्वारा आयोग को प्रेषित किसी भी मामले
में सरकार को परामर्श देना अनुच्छेद- 321.
लोक सेवा
आयोगों के कृत्यों का विस्तार करने की शक्ति
यथास्थिति, संसद द्वारा या किसी राज्य के
विधान-मंडल द्वारा बनाया गया कोई अधिनियम संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा
आयोग द्वारा संघ की या राज्य की सेवाओं के संबंध में और किसी स्थानीय प्राधिकारी
या विधि द्वारा गठित अन्य निगमित निकाय या किसी लोक संस्था की सेवाओं के संबंध में
भी अतिरिक्त कृत्यों के प्रयोग के लिए उपबंध कर सकेगा।
अनुच्छेद- 322.
लोक सेवा
आयोगों के व्यय
संघ या राज्य लोक सेवा आयोग के व्यय, जिनके अंतर्गत आयोग के सदस्यों
या कर्मचारिवृंद को या उनके संबंध में संदेय कोई वेतन, भत्ते और पेंशन हैं, यथास्थिति, भारत की संचित निधि या राज्य की
संचित निधि पर भारित होंगे।
अनुच्छेद-323. लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन
1.
संघ आयोग
का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में
प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और राष्ट्रपति ऐसा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर उन मामलों के
संबंध में, यदि कोई
हों,
जिनमें आयोग की सलाह स्वीकार
नहीं की गई थी, ऐसी
अस्वीकृति के कारणों को सपष्ट करने वाले ज्ञापन सहित उस प्रतिवेदन की प्रति संसद
के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।
2.
राज्य
आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राज्य के राज्यपाल को आयोग द्वारा किए गए कार्य के
बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और संयुक्त आयोग का यह कर्तव्य होगा कि ऐसे
राज्यों में से प्रत्येक के, जिनकी
आवश्यकताओं की पूर्ति संयुक्त आयोग द्वारा की जाती है, राज्यपाल को उस राज्य के संबंध में
आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और दोनों में से
प्रत्येक दशा में ऐसा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर, राज्यपाल उन मामलों के संबंध में, यदि कोई हों, जिनमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की
गई थी,
ऐसी अस्वीकृति के कारणों को
स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहित उस प्रतिवेदन की प्रति राज्य के विधान-मंडल के समक्ष
रखवाएगा।
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