कुपोषण /भारत में कुपोषण के कारण


कुपोषण /भारत में कुपोषण के कारण
शरीर को अच्छे स्वास्थ के लिए संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों और ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं. संतुलित आहार में जो आवश्यक तत्व होते हैं उनके नाम है : प्रोटीन, वसा, कार्बोहायड्रेट, विटामिन, फाइबर और जल. यह आवश्यकता उम्र, लिंग और जीवन शैली पर निर्भर करती हैं. कम या ज्यादा मात्रा में इन तत्वों को लेने से स्वास्थ्य पर बूरा प्रभाव पड़ सकता हैं.
शरीर के लिए आवश्यक सन्तुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलना ही कुपोषण है
 कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। 
 कुपोषण प्राय: पर्याप्त सन्तुलित हार के आभाव में होता है।
कुपोषण की स्थिति
यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कुपोषण के तीन प्रमुख लक्षण होते हैं-
नाटापन (Stunting) - यदि किसी बच्चे का कद उसकी आयु के अनुपात में कम रह जाता है तो उसे नाटापन कहते हैं।
निर्बलता (Wasting) - यदि किसी बच्चे का वज़न उसके कद के अनुपात में कम होता है तो उसे निर्बलता कहा जाता है।
कम वजन (Underweight) - आयु के अनुपात में कम वजन वाले बच्चों को अंडरवेटकहा जाता है।
§  पोषण और देखभाल की कमी तथा बीमारियों के कारण विकासशील देशों में अक्सर बच्चों में यह समस्या पाई जाती है।
भारत में कुपोषण से नुकसान
§  एक युवा कार्यशील जनसंख्या वाले देश में कुपोषण जैसी समस्या आर्थिक महाशक्ति बनने के प्रयासों में बाधक है।
§  वर्ष 2015 की ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत भूख से प्रभावित 20 सबसे बड़े देशों में एक था। दक्षिण एशियाई देशों में तो यह केवल अफगानिस्तान और पाकिस्तान से ही पीछे था।
§  कुपोषण के कारण जी.डी.पी. के 6.4% हानि की वजह से भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों से बहुत पीछे है, जहाँ जी.डी.पी. का क्रमशः 2.3 प्रतिशत और 1.5 प्रतिशत ही कुपोषण की भेंट चढ़ता है।
भारत में कुपोषण के कारण
1-अशिक्षा
2-गरीबी
3-स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्ध
4- रोज़गार की कमी
 5-सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी 
          विकसित राष्ट्रों की अपेक्षा विकासशील देशों में कुपोषण की समस्या विकराल है। इसका प्रमुख कारण है गरीबी। धन के अभाव में गरीब लोग पर्याप्त, पौष्टिक चीजें जैसे दूधफलघी इत्यादि नहीं खरीद पाते। कुछ तो केवल अनाज से मुश्किल से पेट भर पाते हैं। लेकिन गरीबी के साथ ही एक बड़ा कारण अज्ञानता तथा निरक्षरता भी है। अधिकांश लोगों, विशेषकर गाँव, देहात में रहने वाले व्यक्तिय़ों को सन्तुलित भोजन के बारे में जानकारी नहीं होती, इस कारण वे स्वयं अपने बच्चों के भोजन में आवश्यक वस्तुओं का समावेश नहीं करते, इस कारण वे स्वयं तो इस रोग से ग्रस्त होते ही हैं साथ ही अपने परिवार को भी कुपोषण का शिकार बना देते हैं।
§  पोषण की कमी और बीमारियाँ कुपोषण के सबसे प्रमुख कारण हैं। अशिक्षा और गरीबी के चलते भारतीयों के भोजन में आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है जिसके कारण कई प्रकार के रोग जैसे एनीमिया, घेंघा व बच्चों की हड्डियाँ कमज़ोर होना आदि हो जाते हैं। पारिवारिक खाद्य असुरक्षा तथा जागरूकता की कमी।
§  स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 1700 मरीजों पर एक डॉक्टर उपलब्ध हो पाता है, जबकि वैश्विक स्तर पर 1000 मरीजों पर 1.5 डॉक्टर होते हैं।
§  कुपोषण का बड़ा कारण लैंगिक असमानता भी है। भारतीय महिला के निम्न सामाजिक स्तर के कारण उसके भोजन की मात्र और गुणवत्ता में पुरुष के भोजन की अपेक्षा कहीं अधिक अंतर होता है।
§  लड़कियों का कम उम्र में विवाह होना और जल्दी माँ बनना।
स्वच्छ पेयजल की अनुपलब्धता तथा गंदगी भी कुपोषण का एक बहुत बड़ा कारण है।

 सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से होने वाला कुपोषण:- रोगी के शरीर में जब विटामिन A,B,C और D,फोलेट,आयरन,आयोडीन,जिंक और कैल्शियम जैसे खनिज तत्वों की कमी हो जाती है. ये सभी विटामिन्स और खनिज शरीर के लिए बहुत आवश्यक हैं.
·         आयरन की कमी से एनीमिया हो जाता है, दिमाग का विकास नहीं हो पाता और हृदय की गति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता हैं. आयोडीन की कमी से थायराइड ग्रन्थि पर प्रभाव पड़ता हैं और मानसिक विकृति की संभावना भी बढ़ जाती हैं.
·         सेलेनियम की कमी से हृदय और परिसंचरण तन्त्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है,इससे ओस्टियोअर्थराइटिस होने की भी संभावना रहती हैं और प्रतिरक्षा तन्त्र भी कमजोर होता हैं.
·         विटामिन बी12 की कमी से लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण कम हो जाता हैं और तंत्रिकाएं भी विकृत होने लगती हैं. विटामिन A की कमी से दृष्टि कमजोर होने लगती हैं,हड्डियों का विकास भी नहीं हो पाता और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होने लगती हैं.
·         यदि शरीर में विटामिन D की कमी हो जाए,तो रिकेट्स और अन्य हड्डी सम्बन्धित समस्या भी हो सकती हैं. फोलेट या विटामिन बी 9 कम होने पर एनीमिया हो सकता हैं और विकास दर भी कम हो जाती हैं.जिंक की कमी होने पर एनीमिया के साथ संवेदी बोध भी कम हो जाता है
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सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास
§  यूनिसेफ द्वारा जारी रैपिड सर्वे ऑन चिल्ड्रन’ (RSOC) के आँकड़ों के अनुसार भारत में विगत आठ वर्षों में कुपोषण के मोर्चे पर अच्छा-खासा सुधार हुआ है।
§  इसकी बड़ी वजह यह भी है कि सरकार एकीकृत बाल विकास सेवाओं’ (ISDS) जैसी पोषाहार योजनाओं पर खासा जोर दे रही है।
§   राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और मनरेगा जैसी योजनाएँ भी स्वास्थ्य एवं रोज़गार की बेहतर सुविधा मुहैया करा रही हैं।
§  30 नवंबर 2017 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय पोषण मिशन की स्थापना को स्वीकृति दी 

थी.इस मिशन के तहत बच्चों, महिलाओं में कुपोषण की समस्या को दूर करना है. राष्ट्रीय 

योजना के अंतर्गत नवजात बच्चों के वजन में कमी, ठिगनेपन, खून की कमी, खाने में पोषक

 तत्वों का असंतुलन आदि के निवारण के लिए नियम बनाए जाएंगे. इसका मुख्य मकसद

 भारत तो कुपोषण मुक्त करना है.

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बचाव के तरीके
§  बच्चों को पोषक आहारः छह महीने तक केवल माँ का दूध उसके बाद से शिशुओं को पूरक आहार (दाल का पानी, डिब्बाबंद प्रोटीन आदि) दिया जाए। किशोरियों को आयरन की गोलियाँ देना आवश्यक है ताकि वे रक्ताल्पता (Anaemia) की शिकार न हो जाएँ।
§  स्वच्छता का ध्यानः यदि झुग्गियों में और बच्चों के आस-पास सफाई का पूरा ध्यान रखा जाए तो संक्रमण से अधिकाधिक बचा जा सकता है।
कुपोषण निवारण की राह
§  खाद्य सब्सिडी का परिवर्तित स्वरूप भी बेहतर पोषाहार प्रदान कर सकता है। इसमें एक कदम और आगे बढ़ते हुए सरकार को प्रत्येक बच्चे को आवश्यक पोषक तत्त्व और विटामिन उपलब्ध कराने होंगे।
§  जलवायु परिवर्तन से नष्ट होने वाली फसलों हेतु कृषि जीवन बीमा योजना, मृदा परीक्षण, गुणवत्तापूर्ण बीज व कम ब्याज पर किसानों के लिये ऋण तथा सिंचाई से संबंधित योजनाएँ चलाई जा रही हैं; जिससे कि खाद्यान्न की देश में पर्याप्तता सुनिश्चित की जा सके।
§  स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने हेतु, नए स्वास्थ्य केद्रों का गठन तथा जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। स्वास्थ्य केंद्रों पर बच्चों के पोषण के लिये जरूरी दवाओं और विटामिनों की किफायती उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिये।
§  महिलाओं में कुपोषण के प्रति जागरूकता लाने के लिये सरकार को सामुदायिक मॉडल पर काम करना होगा। सरकार को प्रत्येक आँगनवाड़ी केंद्र पर एक प्रशिक्षिका भेजकर ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षण देना होगा। इस संदर्भ में आशाकी भूमिका सराहनीय हो सकती है।
§  मध्याह्न भोजन (मिड डे मील) - यदि स्कूलों में पोषण के बारे में जागरूकता प्रदान की जाए तो कुपोषण के आंकड़ों को बहुत कम किया जा सकता है। इस संदर्भ में मध्याह्न भोजन (मिड डे मील) का नाम लिया जा सकता है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में सुधार की ज़रूरत है।

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