I S R O /भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन/आज तक का इसरो
अंतरिक्ष विभाग
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
आज तक का इसरो
हमारे देश में
अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों की शुरूआत 1960 के दौरान हुई, जिस
समय संयुक्त राष्ट्र अमरीका में भी उपग्रहों का प्रयोग करने वाले
अनुप्रयोग
परीक्षणात्मक चरणों पर थे। अमरीकी उपग्रह ‘सिनकाम-3’ द्वारा
प्रशांत महासागरीय
क्षेत्र में टोकियो ओलंपिक खेलों के सीधे प्रसारण ने संचार
उपग्रहों की सक्षमता को
प्रदर्शित किया, जिससे डॉ. विक्रम साराभाई, भारतीय
अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक ने
तत्काल भारत के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के
लाभों को पहचाना।
डॉ. साराभाई यह मानते
थे तथा उनकी यह दूरदर्शिता थी कि अंतरिक्ष के संसाधनों में इतना सामर्थ्य है कि
वह मानव तथा समाज की वास्तविक समस्याओं को दूर कर सकते हैं। अहमदाबाद स्थित
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पी.आर.एल.) के निदेशक के रूप में डॉ. साराभाई ने देश
के सभी ओर से सक्षम तथा उत्कृष्ट वैज्ञानिकों, मानवविज्ञानियों, विचारकों तथा
समाजविज्ञानियों को मिलाकर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का नेतृत्व करने के लिए एक
दल गठित किया।
अपनी
शुरूआती दिनों से ही भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सुदृढ़ योजना रही तथा तीन
विशिष्ट खंड जैसे संचार तथा सुदूर संवेदन के लिए उपग्रह, अंतरिक्ष परिवहन
प्रणाली तथा अनुप्रयोग कार्यक्रम को, इसमें शामिल किया गया।
डॉ. साराभाई तथा डॉ. रामनाथन के नेतृत्व में इन्कोस्पार (भारतीय राष्ट्रीय
अंतरिक्ष अनुसंधान समिति) की शुरूआत हुई। 1967 में, अहमदाबाद स्थित पहले
परीक्षणात्मक उपग्रह संचार भू-स्टेशन (ई.एस.ई.एस.) का प्रचालन किया गया, जिसने भारतीय तथा
अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों और अभियंताओं के लिए प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में
भी कार्य किया।
इस
बात को सिद्ध करने के लिए कि उपग्रह प्रणाली राष्ट्रीय विकास में अपना योगदान दे
सकती है, इसरो
के समक्ष यह स्पष्ट धारणा थी कि अनुप्रयोग विकास की पहल में अपने स्वयं के
उपग्रहों की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। शुरूआती दिनों में, विदेशी उपग्रहों का
प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि एक पूर्ण विकसित उपग्रह प्रणाली के परीक्षण से
पहले, राष्ट्रीय
विकास के लिए दूरदर्शन माध्यम की क्षमता को प्रमाणित करने के लिए कुछ नियंत्रित
परीक्षणों को आवश्यक माना गया। तदनुसार, किसानों के लिए कृषि
संबंधी सूचना देने हेतु टी.वी. कार्यक्रम ‘कृषि दर्शन’ की शुरूआत की गई, जिसकी अच्छी
प्रतिक्रिया मिली।
अगला
तर्कसंगत कदम था उपग्रह अनुदेशात्मक टेलीविजन परीक्षण (साइट), जो वर्ष 1975-76 के दौरान ‘विश्व में सबसे बड़े
समाजशास्त्रीय परीक्षण’ के
रूप में सामने आया। इस परीक्षण से छह राज्यों के 2400 ग्रामों के करीब 200,000 लोगों को लाभ पहुँचा
तथा इससे अमरीकी प्रौद्योगिकी उपग्रह (ए.टी.एस.-6) का प्रयोग करते हुए
विकास आधारित कार्यक्रमों का प्रसारण किया गया। एक वर्ष में प्राथमिक स्कूलों के 50,000 विज्ञान के अध्यापकों
को प्रशिक्षित करने का श्रेय साइट को जाता है।
साइट
के बाद, वर्ष
1977-79 के दौरान फ्रेंको-जर्मन सिमफोनी उपग्रह का प्रयोग करते हुए इसरो
तथा डाक एवं तार विभाग (पी.एवं टी.) की एक संयुक्त परियोजना उपग्रह दूरसंचार
परीक्षण परियोजना (स्टेप) की शुरूआत की गई। दूरदर्शन पर केन्द्रित साइट के क्रम
में परिकल्पित स्टेप दूरसंचार परीक्षणों के लिए बनाया गया था। स्टेप का उद्देश्य
था घरेलू संचार हेतु भूतुल्यकाली उपग्रहों का प्रयोग करते हुए प्रणाली जाँच
प्रदान करना, विभिन्न
भू खंड सुविधाओं के डिजाइन, उत्पादन, स्थापना, प्रचालन तथा रखरखाव में
क्षमताओं तथा अनुभव को हासिल करना तथा देश के लिए प्रस्तावित प्रचालनात्मक घरेलू
उपग्रह प्रणाली, इन्सैट
के लिए आवश्यक स्वदेशी क्षमता का निर्माण करना।
साइट
के बाद, ‘खेड़ा संचार परियोजना (के.सी.पी.)’ की शुरूआत हुई जिसने
गुजरात राज्य के खेड़ा जिले में आवश्यकतानुसार तथा स्थानीय विशिष्ट कार्यक्रम
प्रसारण के लिए क्षेत्र प्रयोगशाला के रूप में कार्य किया। के.सी.पी. को 1984 में कुशल ग्रामीण
संचार सक्षमता के लिए यूनिस्को-आई.पी.डी.सी. (संचार के विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय
कार्यक्रम) पुरस्कार प्रदान किया गया।
इस
अवधि के दौरान, भारत
का प्रथम अंतरिक्षयान ‘आर्यभट्ट’ का विकास किया गया तथा
सोवियत राकेट का प्रयोग करते हुए इसका प्रमोचन किया गया। दूसरी प्रमुख उपलब्धि थी
निम्न भू कक्षा (एल.ई.ओ.) में 40 कि.ग्रा. को स्थापित
करने की क्षमता वाले प्रथम प्रमोचक राकेट एस.एल.वी.-3 का विकास करना, जिसकी पहली सफल उड़ान 1980 में की गई। एस.एल.वी.-3 कार्यक्रम के माध्यम
से संपूर्ण राकेट डिजाइन, मिशन
डिजाइन, सामग्री, हार्डवेयर संविरचन, ठोस नोदन प्रौद्योगिकी, नियंत्रण ऊर्जा संयंत्र, उड्डयनकी, राकेट समेकन जाँच तथा
प्रमोचन प्रचालन के लिए सक्षमता का निर्माण किया गया। हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रमों
में उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने हेतु उपयुक्त नियंत्रण तथा मार्गदर्शन के
साथ बहु-चरणीय राकेट प्रणालियों का विकास करना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
80
के दशक के परीक्षणात्मक चरण में, प्रयोक्ताओं के लिए, सहयोगी भू प्रणालियों
के साथ अंतरिक्ष प्रणालियों के डिजाइन, विकास तथा कक्षीय
प्रबंधन में शुरू से अंत तक क्षमता प्रदर्शन किया गया। सुदूर संवेदन के क्षेत्र
में भास्कर-। एवं ।। ठोस कदम थे जबकि भावी संचार उपग्रह प्रणाली के लिए ‘ऐरियन यात्री नीतभार
परीक्षण (ऐप्पल) अग्रदूत बना। जटिल संवर्धित उपग्रह प्रमोचक राकेट (ए.एस.एल.वी.)
के विकास ने नई प्रौद्योगिकियों जैसे स्ट्रैप-ऑन, बलबस ताप कवच, बंद पाश मार्गदर्शिका
तथा अंकीय स्वपायलट के प्रयोग को भी प्रदर्शित किया। इससे, जटिल मिशनों हेतु
प्रमोचक राकेट डिजाइन की कई बारीकियों को जानने का मौका मिला, जिससे पी.एस.एल.वी. तथा
जी.एस.एल.वी. जैसे प्रचालनात्मक प्रमोचक राकेटों का निर्माण किया जा सका।
90
के दशक के प्रचालनात्मक दौर के दौरान, दो व्यापक श्रेणियों
के अंतर्गत प्रमुख अंतरिक्ष अवसंरचना का निर्माण किया गया: एक का प्रयोग
बहु-उद्देश्यीय भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्सैट) के माध्यम से संचार, प्रसारण तथा
मौसमविज्ञान के लिए किया गया, तथा दूसरे का भारतीय
सुदूर संवेदन उपग्रह (आई.आर.एस.) प्रणाली के लिए। ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक राकेट
(पी.एस.एल.वी.) तथा भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोचक राकेट (जी.एस.एल.वी.) का विकास
तथा प्रचालन इस चरण की विशिष्ट उपलब्धियाँ थीं।
दर्शन
अंतरिक्षविज्ञान
में अनुसंधान व ग्रहीय अन्वेषण के साथ-साथ राष्ट्रीय विकास में अंतरिक्ष
प्रौद्योगिकी का प्रयोग हमारा दर्शन है।
· अंतरिक्ष तक
पहुंच बनाने के लिए प्रक्षेपण वाहनों व तत्संबंधित प्रौद्योगिकियों का अभिकल्पन
व विकास
· भू-पर्यवेक्षण, संचार, दिशानिर्देशन, मौसमविज्ञान तथा अंतरिक्षविज्ञान के लिए उपग्रहों व तत्संबंधित
प्रौद्योगिकियों का अभिकल्पन व विकास
· दूरसंचार, टेलिविज़न प्रसारण तथा विकास संबंधित अनुपयोगों के लिए
भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इन्सेट) कार्यक्रम
· उपग्रह अधारित
चित्रों द्वारा प्राकृतिक संसाधानों के प्रबंधन तथा पर्यावरण के मानिटरन के वास्ते
भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस) कार्यक्रम
· सामाजिक विकास तथा
आपदा प्रबंधन में सहायता के लिए अंतरिक्ष आधारित अनुप्रयोग
· अंतरिक्षविज्ञान
तथा ग्रहीय अन्वेषण में अनुसंधान एवं विकास कार्य
उपलब्धियाँ
1. ध्रुवीय उपग्रह
प्रमोचन वहन (पीएसएलवी) की कार्यकारी उड़ानें
2. भू तूल्यकाली
उपग्रह प्रमोचन वहन (जीएसएलवी-मार्क-।।) की विकासात्मक उड़ान
3. भारी नीतभार
क्षमता युक्त भू तूल्यकालि उपग्रह प्रमोचन वहन (जीएसएलवी-मार्क-।।।) की विकासात्मक
उड़ान
4. भावी प्रमोचन
वाहनों के लिए अर्ध-क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी का विकास
5. संचार उपग्रहों
का अभिकल्पन, विकास एवं उपलब्धि
6. भू पर्यवेक्षण
उपग्रहों का अभिकल्पन, विकास एवं उपलब्धि
7. दिशानिर्देशन
उपग्रह तंत्र का विकास
8. अंतरिक्षविज्ञान
तथा ग्रहीय अन्वेषण उपग्रह प्रणाली का विकास
9. भू पर्यवेक्षण
अनुप्रयोग
10. सामाजिक उपयोग के
लिए अंतरिक्ष आधारित प्रणालियां
11. उन्नत
प्रौद्योगिकियॉं तथा नए प्रयास
12. प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण तथा शिक्षण
13. अंतरिक्ष
प्रौद्योगिकी का प्रचार-प्रसार
14. बुनियादी
संरचनाओं, सुविधाओं का विकास एवं मिशन संचालन में सहायता
15. अंतर्राष्ट्रीय
सहयोग
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