संघ लोक सेवा आयोग UPSC with mcq
संघ लोक सेवा आयोग (अंग्रेज़ी: Union Public Service Commission (UPSC) -यूनियन पब्लिक
सर्विस कमीशन), भारत के संविधान द्वारा स्थापित एक संवैधानिक निकाय है जो भारत सरकार के लोकसेवा के पदाधिकारियों की नियुक्ति के
लिए परीक्षाओं का संचालन करता है। संविधान के भाग-14 के अंतर्गत
अनुच्छेद 315-323 में एक संघीय
लोक सेवा आयोग और राज्यों के लिए राज्य लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान है
1919 के भारत सरकार अधिनियम में इस भावना की
व्यावहारिक अभिव्यक्ति मिलती है। उसमें एक सार्वजनिक सेवा आयोग की स्थापना का
विधान था जिसकी सेवाओं के लिये पदाधिकारियों की भर्ती, भारत की सार्वजनिक सेवाओं का नियंत्रण तथा ऐसे अन्य
कर्त्तव्य होंगे जिनका निर्देश सपरिषद भारत सचिव करेंगे। परंतु उस आयोग की स्थापना
तत्काल नहीं हुई। 1923 में, लॉर्ड ली के नेतृत्व में, एक रॉयल कमिशन नियुक्त हुआ, जिसको भारत उच्च
सेवाओं के ऊपर विचार एवं विवरण प्रस्तुत करना था। उस कमिशन ने, अपने 27 मार्च 1924के विवरण में, तत्काल उस लोक सेवा आयोग की स्थापना की आवश्यकता पर विशेष
बल दिया, जिसका 1919 के भारत सरकार अधिनियम में संकेत किया गया था। उसका
प्रस्ताव था कि उक्त आयोग के निम्नलिखित चार मुख्य कार्य होंगे:
(१) सार्वजनिक
सेवाओं के लिये कर्मचारियों की भर्ती,
(२) सेवाओं में
प्रविष्ट होनेवाले व्यक्तियों की योग्यताओं का विधान तथा उचित मान स्थिर करना,
(३) सेवाओं के
अधिकारों की सुरक्षा करना तथा नियंत्रण एवं अनुशासन की व्यवस्था करना, जो लगभग न्यायविधान की कोटि का कार्य है।
(४) सामान्य रूप
से सेवा संबंधी समस्याओं पर परामर्श एवं अनुमति देना।
उस लोकसेवा आयोग
की स्थापना 1926 के अक्टूबर मास में हुई। एक नियमावली बनाई गई जिसमें इस बात का
विधान था कि अखिल भारत की प्रथम और द्वितीय श्रेणियों की सेवाओं के, उन प्रतियोगिता परीक्षाओं के पाठ्यक्रमों के निर्धारण जिनके
द्वारा कर्मचारियों का निर्वाचन हो, उक्त सेवाओं के
लिये पदोन्नति, अनुशासनीय कार्य, वेतन, भत्ते, पेंशन, प्रॉविडेंट फंड एवं पारिवारिक पेंशन विषय आदि मामलों में
सरकार उससे परामर्श ले। किसी मिसी वर्ग विशेष या सभी सेवाओं के नियमाधार तथा
छुट्टी आदि के नियमों के प्रश्नों पर भी सरकार उक्त आयोग से परामर्श करेगी।
उक्त नियमावली
में आयोग के लिये जो नियम निर्दिष्ट किए गए थे उनका सुधार तथा स्थायीकरण उसे
श्वेतपत्र के द्वारा हुआ जिसमें वैघानिक सुधारों के लिये ऐसे प्रस्ताव थे जिनके
अनुसार प्रत्येक सूबे के लिये भी आयोगों की स्थापना करने का विधान था। उन सभी
प्रतियोगिता परीक्षाओं की वयवस्था करना जिनके द्वारा पदाधिकारियों का चुनाव हो, केंद्रीय तथा सूबे के आयोगों का कर्त्तव्य बतलाया गया।
सरकार को आयोगों से इसका भी परामर्श करना था कि सेवाओं के लिये, किस प्रकार चुनाव के द्वारा नियुक्ति हो, पदोन्नति कैसे किए जाएँ, एक विभाग से
दूसरे विभाग में स्थानांतरण कैसे किए जाएँ, आदि।
उक्त श्वेतपत्र
में यह प्रस्ताव भी किया गया था कि सरकार को आयोगों से भिन्न विषयों पर भी परामर्श
लेना चाहिए:
(क) अनुशासनीय
कार्य,
(ख) यदि किसी
पदाधिकारी के विरूद्व कोई अभियोग चलाया गया हो तो उसके रक्षाविषयक व्यय की सरकार
द्वारा पूर्ति।
(ग) समय समय के
अधिनियमों के अनुसार उठे हुए अन्य प्रश्न।
भारत सरकार 1935 अधिनियम के परिच्छेद 266 में, उपर्युक्त प्रस्तावों को स्थायी रूप दिया गया। उसमें लोक सेवा आयोगों के कर्त्तव्यों को स्पष्ट रूप से
निर्धारित कर दिया गया। यह कहा जा सकता है कि उक्त विधान के द्वारा ही आयोगों की
अंतिम एवं स्थायी रूप में रचना की गई थी। आज के केंद्रीय अथवा राज्यों के आयोग का
संगठन, रूप एवं आधार, सब उसी पर
अवलंबित हैं।
स्वतंत्रता के
बाद, संविधान सभा ने अनुभव किया कि सिविल सेवाओं में
निष्पक्ष भर्ती सुनिश्चित करने के साथ ही सेवा हितों की रक्षा के लिए संघीय एवं
प्रांतीय, दोनों स्तरों पर लोक सेवा आयोगों को एक सुदृढ़ और
स्वायत्त स्थिति प्रदान करने की आवश्यकता महसूस की गई
भारत के संविधान द्वारा संघ लोक सेवा आयोग के लिए अनुच्छेद-
अनुच्छेद- 315. संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग
1.
इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य के लिए एक
लोक सेवा आयोग होगा।
2.
दो या अधिक राज्य यह करार कर सकेंगे कि राज्यों के उस
समूह के लिए एक ही लोक सेवा आयोग होगा और यदि इस आशय का संकल्प उन राज्यों में से
प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के सदन द्वारा या जहाँ दो सदन हैं वहाँ प्रत्येक सदन
द्वारा पारित कर दिया जाता है तो संसद उन राज्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के
लिए विधि द्वारा संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग की (जिसे इस अध्याय में संयुक्त आयोग
कहा गया है) नियुक्ति का उपबंध कर सकेगी।
3.
पूर्वोक्त प्रकार की किसी विधि में ऐसे आनुषंगिक और
पारिणामिक उपबंध हो सकेंगे जो उस विधि के प्रयोजनों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक
या वांछनीय हों।
4.
यदि किसी राज्य का राज्यपाल संघ लोक सेवा आयोग से ऐसा
करने का अनुरोध करता है तो वह राष्ट्रपति के अनुमोदन से उस राज्य की सभी या
किन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सहमत हो सकेगा।
5.
इस संविधान में, जब तक कि संदर्भ
से अन्यथा अपेक्षित न हो संघ लोक सेवा आयोग या किसी राज्य लोक सेवा आयोग के प्रति
निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे ऐसे आयोग के प्रति निर्देश हैं जो
प्रश्नगत किसी विशिष्ट विषय के संबंध में, यथास्थिति, संघ की या राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
अनुच्छेद- 316. सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि
1.
परंतु प्रत्येक लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से यथाशक्य निकटतम आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी-अपनी नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कम से कम दस वर्ष तक पद धारण कर चुके हैं और उक्त दस वर्ष की अवधि की संगणना करने में इस संविधान के प्रारंभ से पहले की ऐसी अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण किया है।
i.
यदि आयोग
के अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है या यदि कोई ऐसा अध्यक्ष अनुपस्थिति के कारण
या अन्य कारण से अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है तो, यथास्थिति, जब तक
रिक्त पद पर खंड (1) के अधीन
नियुक्त कोई व्यक्ति उस पद का कर्तव्य भार ग्रहण नहीं कर लेता है या जब तक अध्यक्ष
अपने कर्तव्यों को फिर से नहीं संभाल लेता है तब तक आयोग के अन्य सदस्यों में से
ऐसा एक सदस्य,
जिसे संघ आयोग या संयुक्त आयोग
की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में उस राज्य का राज्यपाल इस प्रयोजन
के लिए नियुक्त करे, उन
कर्तव्यों का पालन करेगा।
2.
लोक सेवा
आयोग का सदस्य,
अपने पद ग्रहण की तारीख से छह
वर्ष की अवधि तक या संघ आयोग की दशा में पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक और
राज्य आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में [बासठ वर्ष] की आयु प्राप्त कर लेने तक
इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद
धारण करेगा।
o परंतु –
i.
लोक सेवा
आयोग का कोई सदस्य, संघ आयोग
या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति को और राज्य आयोग की दशा में राज्य के
राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
ii.
लोक सेवा
आयोग के किसी सदस्य को, अनुच्छेद
317 के खंड (1) या खंड (3) में
उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगा।
3. कोई व्यक्ति जो लोक सेवा आयोग के
सदस्य के रूप में पद धारण करता है, अपनी
पदावधि की समाप्ति पर उस पद पर पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।
अनुच्छेद- 317. लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का हटाया
जाना और निलंबित किया जाना
1.
2. आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य
को, जिसके संबंध में खंड (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय को निर्देश किया गया है, संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य
आयोग की दशा में राज्यपाल उसके पद से तब तक के लिए निलंबित कर सकेगा जब तक
राष्ट्रपति ऐसे निर्देश पर उच्चतम न्यायालय का प्रतिवेदन मिलने पर अपना आदेश पारित
नहीं कर देता है।
3.
खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, यदि लोक सेवा आयोग का, यथास्थिति, अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य –
i.
दिवालिया
न्यायनिर्णीत किया जाता है,या
ii.
अपनी
पदावधि में अपने पद के कर्तव्यों के बाहर किसी सवेतन नियोजन में लगता है,या
iii.
राष्ट्रपति
की राय में मानसिक या शारीरिक शैथिल्य के कारण अपने पद पर बने रहने के लिए अयोग्य
है, तो राष्ट्रपति, अध्यक्ष या ऐसे अन्य सदस्य को आदेश द्वारा पद से हटा सकेगा।
4. यदि लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या कोई
अन्य सदस्य,
निगमित कंपनी के सदस्य के रूप
में और कंपनी के अन्य सदस्यों के साथ सम्मिलित रूप से अन्यथा, उस संविदा या करार से, जो भारत
सरकार या राज्य सरकार के द्वारा या निमित्त की गई या किया गया है, किसी प्रकार से संपृक्त या हितबद्ध है या हो जाता है या उसके
लाभ या उससे उद्भूत किसी फायदे या उपलब्धि में भाग लेता है तो वह खंड (1) के प्रयोजनों के लिए कदाचार का दोषी समझा जाएगा।
अनुच्छेद- 318. आयोग के सदस्यों और कर्मचारिवृंद की सेवा
की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति
i.
आयोग के
सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों का अवधारण कर सकेगा; और
ii.
आयोग के
कर्मचारिवृंद के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों के संबंध में उपबंध कर
सकेगा:
परंतु
लोक सेवा आयोग के सदस्य की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए
अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद- 319. आयोग के सदस्यों द्वारा ऐसे सदस्य न रहने
पर पद धारण करने के संबंध में प्रतिषेध
1. संघ लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष भारत
सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी भी और नियोजन का पात्र नहीं होगा;
2. किसी राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में अथवा किसी अन्य राज्य लोक
सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य
नियोजन का पात्र नहीं होगा;
3. संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष से
भिन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में या किसी राज्य लोक
सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य
नियोजन का पात्र नहीं होगा;
4. किसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष
से भिन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य के रूप
में अथवा उसी या किसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त
होने का पात्र होगा, किन्तु
भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा।
अनुच्छेद- 320 लोक सेवा आयोगों के कृत्य
1.
2. यदि संघ लोक सेवा आयोग से कोई दो या
अधिक राज्य ऐसा करने का अनुरोध करते हैं तो उसका यह भी कर्तव्य होगा कि वह ऐसी
किन्हीं सेवाओं के लिए, जिनके
लिए विशेष अर्हताओं वाले अभ्यर्थी अपेक्षित हैं, संयुक्त भर्ती की स्कीमें बनाने और उनका प्रवर्तन करने में उन
राज्यों की सहायता करे।
3.
यथास्थिति, संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग से--
i.
सिविल
सेवाओं में और सिविल पदों के लिए भर्ती की पद्धतियों से संबंधित सभी विषयों पर,
ii.
सिविल
सेवाओं और पदों पर नियुक्ति करने में तथा एक सेवा से दूसरी सेवा में प्रोन्नति और
अंतरण करने में अनुसरण किए जाने वाले सिद्धांतों पर और ऐसी नियुक्ति, प्रोन्नति या अंतरण के लिए अभ्यर्थियों की उपयुक्तता पर,
iii.
ऐसे
व्यक्ति पर,
जो भारत सरकार या किसी राज्य की
सरकार की सिविल हैसियत में सेवा कर रहा है, प्रभाव
डालने वाले,
सभी अनुशासनिक विषयों पर, जिनके अंतर्गत ऐसे विषयों से संबंधित अभ्यावेदन या याचिकाएँ
हैं,
iv.
ऐसे
व्यक्ति द्वारा या उसके संबंध में, जो भारत
सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन या भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी
राज्य की सरकार के अधीन सिविल हैसियत में सेवा कर रहा है या कर चुका है, इस दावे पर कि अपने कर्तव्य के निष्पादन में किए गए या किए
जाने के लिए तात्पर्यित कार्यों के संबंध में उसके विरुद्ध संस्थित विधिक
कार्यवाहियों की प्रतिरक्षा में उसके द्वारा उपगत खर्च का, यथास्थिति, भारत की
संचित निधि में से या राज्य की संचित निधि में से संदाय किया जाना चाहिए,
v.
भारत
सरकार या किसी राज्य की सरकार या भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की
सरकार के अधीन सिविल हैसियत में सेवा करते समय किसी व्यक्ति को हुई क्षतियों के
बारे में पेंशन अधिनिर्णित किए जाने के लिए किसी दावे पर और ऐसे अधिनिर्णय की रकम
विषयक प्रश्न पर परामर्श किया जाएगा और इस प्रकार उसे निर्देशित किए गए किसी विषय
पर तथा ऐसे किसी अन्य विषय पर, जिसे, यथास्थिति, राष्ट्रपति
या उस राज्य का राज्यपाल उसे निर्देशित करे, परामर्श
देने का लोक सेवा आयोग का कर्तव्य होगा :
परंतु अखिल भारतीय सेवाओं के संबंध
में तथा संघ के कार्यकलाप से संबंधित अन्य सेवाओं और पदों के संबंध में भी
राष्ट्रपति तथा राज्य के कार्यकलाप से संबधित अन्य सेवाओं और पदों के संबंध में
राज्यपाल उन विषयों को विनिर्दिष्ट करने वाले विनियम बना सकेगा जिनमें साधारणतया
या किसी विशिष्ट वर्ग के मामले में या किन्हीं विशिष्ट परिस्थितियों में लोक सेवा
आयोग से परामर्श किया जाना आवश्यक नहीं होगा।
4. खंड (3) की किसी बात से यह अपेक्षा नहीं होगी कि लोक सेवा आयोग से उस रीति
के संबंध में,
जिससे अनुच्छेद 16 के खंड (4) में
निर्दिष्ट कोई उपबंध किया जाना है या उस रीति के संबंध में, जिससे अनुच्छेद 335 के
उपबंधों को प्रभावी किया जाना है, परामर्श
किया जाए।
5. राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल
द्वारा खंड (3)
के परंतुक के अधीन बनाए गए सभी
विनियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, यथास्थिति, संसद के
प्रत्येक सदन या राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के समक्ष कम से कम
चौदह दिन के लिए रखे जाएँगे और निरसन या संशोधन द्वारा किए गए ऐसे उपांतरणों के
अधीन होंगे जो संसद के दोनों सदन या उस राज्य के विधान-मंडल का सदन या दोनों सदन
उस सत्र में करें जिसमें वे इस प्रकार रखे गए हैं।
आयोग के कार्य
संविधान के अनुच्छेद 320 के
अंतर्गत, अन्य बातों के साथ-साथ सिविल सेवाओं
तथा पदों के लिए भर्ती संबंधी सभी मामलों में आयोग का परामर्श लिया जाना अनिवार्य
होता है। संविधान के अनुच्छेद 320 के
अंतर्गत आयोग के प्रकार्य इस प्रकार हैं:
1. संघ के लिए सेवाओं में नियुक्ति हेतु
परीक्षा आयोजित करना
2. साक्षात्कार द्वारा चयन से सीधी
भर्ती
3. प्रोन्नति/ प्रतिनियुक्ति/ आमेलन
द्वारा अधिकारियों की नियुक्ति
4. सरकार के अधीन विभिन्न सेवाओं तथा
पदों के लिए भर्ती नियम तैयार करना तथा उनमें संशोधन
5. विभिन्न सिविल सेवाओं से संबंधित
अनुशासनिक मामले
6. भारत के राष्ट्रपति द्वारा आयोग को
प्रेषित किसी भी मामले में सरकार को परामर्श देना
अनुच्छेद- 321. लोक सेवा आयोगों के कृत्यों का विस्तार
करने की शक्ति
अनुच्छेद- 322. लोक सेवा आयोगों के व्यय
अनुच्छेद-323. लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन
1.
2. राज्य आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राज्य के राज्यपाल को आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और संयुक्त आयोग का यह कर्तव्य होगा कि ऐसे राज्यों में से प्रत्येक के, जिनकी आवश्यकताओं की पूर्ति संयुक्त आयोग द्वारा की जाती है, राज्यपाल को उस राज्य के संबंध में आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और दोनों में से प्रत्येक दशा में ऐसा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर, राज्यपाल उन मामलों के संबंध में, यदि कोई हों, जिनमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहित उस प्रतिवेदन की प्रति राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा।
(a) गृह मंत्री द्वारा
(b) राष्ट्रपति द्वारा
(c) संसद द्वारा
(d) सुप्रीम कोर्ट द्वारा
उत्तर b
व्याख्या: राष्ट्रपति द्वारा
2. निम्न में से कौन सा कथन संघ लोक सेवा आयोग के बारे में सत्य नही है?
(a) यह एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है
(b) संविधान के अनुच्छेद 318 से 323 तक इसके कार्यों और शक्तियों के बारे में बताया गया है.
(c) इसमें अध्यक्ष समेत 9 से 11 सदस्य होते हैं
(d) इसके सदस्यों के चयन के लिए किसी भी विशिष्ट योग्यता का वर्णन संविधान में नही है
उत्तर b
व्याख्या: संविधान के अनुच्छेद 315 से 323 तक इसके कार्यों और शक्तियों के बारे में बताया गया है.
3. संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य अपना इस्तीफ़ा किसे देते हैं?
(a) संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को
(b) सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को
(c) राष्ट्रपति को
(d) गृह मंत्री को
उत्तर c
व्याख्या: राष्ट्रपति को
4. निम्न में से कौन सा कथन संघ लोक सेवा आयोग के बारे में सत्य है?
(a) आयोग के सदस्य और अध्यक्ष का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है
(b) आयोग के सदस्य और अध्यक्ष 62 वर्ष तक की उम्र तक अपने पद पर रह सकते हैं
(c) राष्ट्रपति सदस्य और अध्यक्ष को अपनी मर्जी से हटा सकता है
(d) संविधान के भाग 14 में संघ लोक सेवा आयोग के बारे में बताया गया है
उत्तर d
व्याख्या: संविधान के भाग 14 में संघ लोक सेवा आयोग के बारे में बताया गया है.
5. संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों को पद से किस दशा में हटाया जा सकता है?
(a) दिवालिया घोषित होने में
(b) दोहरे लाभ के पद पर होने में
(c) मानसिक या शारीरिक अक्षमता होने पर
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर d
व्याख्या: उपर्युक्त सभी
6. संघ लोक सेवा आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट किसे सौंपता है?
(a) गृह मंत्री को
(b) राष्ट्रपति को
(c) संसद को
(d) सुप्रीम कोर्ट को
उत्तर b
व्याख्या: राष्ट्रपति को
7. संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का वेतन, पेंशन और भत्ते किस पर भारित होते हैं?
(a) भारत की संचित निधि
(b) भारत की आकस्मिक निधि
(c) वित्त मंत्रालय
(d) इनमे से कोई नही
उत्तर a
व्याख्या: भारत की संचित निधि
8. निम्न में से कौन सा अनुच्छेद सुमेलित नही है?
(a) अनुच्छेद 315 : संघ तथा राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग का गठन
(b) अनुच्छेद 316 : सदस्यों की नियुक्ति और कार्यकाल
(c) अनुच्छेद 320 : लोक सेवा आयोगों के कार्य
(d) अनुच्छेद 322 : लोक सेवा आयोग के सदस्यों की बर्खास्तगी
उत्तर d
व्याख्या: अनुच्छेद 322 : लोक सेवा आयोगों का खर्च
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