रीवा रियासत महाराज गुलाब सिंह
महाराज गुलाब सिंह एक कुशल प्रशासक के साथ-साथ समाज सुधारक थे?
ब्रिटिश कालीन भारत की सेन्ट्रल इण्डिया एजेन्सी की मुख्य रियासत रीवा थी। इस रियासत के 33वें नरेश थे महाराज गुलाब सिंह। महाराज गुलाब सिंह एक कुशल प्रशासक के साथ-साथ समाज सुधारक और स्वदेशी भावना की अलख जगाने वाले देश के प्रथम शासक थे। गुलाब सिंह ने ब्रिटिश शासन काल में सर्वप्रथम अपने राज्य में उत्तरदायी सरकार की घोषणा की थी।
परम प्रतापी महाराज वेंकटरमण सिंह और माता महारानी श्री शिवराज कुमारी देवी की संतान के रूप में महाराजा गुलाब सिंह का जन्म फाल्गुन शुक्ल 15 विक्रमी संवत् 1960 (13 मार्च, 1903) को रियासत के किला परिसर में हुआ था। महारानी श्री शिवराज कुमारी देवी डुमराँव के महाराज राधिका प्रसाद सिंह परमार की पुत्री थीं जो उज्जैनिन महारानी के नाम से प्रख्यात थीं। महाराज गुलाब सिंह की किशोरावस्था में ही उनकी माताश्री का स्वर्गवास 23 नवम्बर 1917 को और उनके पिताश्री का स्वर्गवास 30 अक्टूबर 1918 को हो गया था। माता-पिता के निधन के असीम दुख ने उनमें अटूट धैर्य व साहस के साथ कष्ट को, बिना विचलित हुए सहने की क्षमता प्रदान की। महाराज गुलाब सिंह ने अपने शासन के अंतिम 4 वर्ष ब्रिटिश सरकार से जूझते हुए 30 जनवरी 1946 तक सेन्ट्रल इण्डिया एजेन्सी की सबसे बड़ी रियासत रीवा के शासक रहे।
31 जनवरी 1946 को पुत्र युवराज मार्तण्ड सिंह को रियासत की राजगद्दी सौप दी। युवराज का विधिवत् राज्याभिषेक 6 फरवरी, 1946 को सम्पन्न हुआ। इसके बाद महाराज गुलाब सिंह रीवा रियासत की उन गलियों को छोड़कर, जहाँ की दीवालें उनके नारों ‘‘पढ़िये-पढ़ाइये’’ बम्बई चले गये। अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में उन्होंने हमेशा रीवा के बुने हुए सूत का वस्त्र पहना। साफा, परदनी और छकलिया उनकी पोषाक थी। महाराज गुलाब सिंह ने महात्मा गांधी के कार्यक्रमों को अपने राज्य में लागू किया और अंग्रेजों के कोपभाजन हुए। ब्रिटिश सरकार ने उनके ऊपर मुकदमा चलाया और 1942 से 1946 के बीच उन्हें अपमानित करने की चेष्टा की। यह महाराज गुलाब सिंह का आत्मबल और सत्याग्रह की भावना थी कि उनके ऊपर ब्रिटिश सरकार कोई आरोप सिद्ध न कर पाई। इस तरह रीवा, रीवा की जनता को देकर महाराज गुलाब सिंह 13 अप्रैल 1950 को इस संसार सागर से महाप्रयाण कर जनता को रोता बिलखता छोड चले गये।
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