मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 [The Protection of Human Rights (Amendment) Bill]

 

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को अधिक समावेशी और कुशल बनाने हेतु लोकसभा ने मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 [The Protection of Human Rights (Amendment) Bill] पारित किया है।

§  संशोधन विधेयक, 2019  के तहत भारत के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी ऐसे व्यक्ति को भी आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो।

§  राज्य आयोग के सदस्यों की संख्या को बढ़ाकर 2 से 3 किया जाएगा, जिसमे एक महिला सदस्य भी होगी।

§  मानवाधिकार आयोग में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष और दिव्यांगजनों संबंधी मुख्य आयुक्त को भी सदस्यों के रूप में सम्मिलित किया जा सकेगा।

§  राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों के कार्यकाल की अवधि को 5 वर्ष से कम करके 3 वर्ष किया जाएगा और वे पुनर्नियुक्ति के भी पात्र होंगे।

§   

  • मानव अधिकार आयोग  एक स्वतंत्र वैधानिक संस्था है, जिसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को की गई थी।
  • मानवाधिकार आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • यह संविधान द्वारा दिये गए मानवाधिकारों जैसे- जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और समानता का अधिकार आदि की रक्षा करता है और उनके प्रहरी के रूप में कार्य करता है।

आयोग की संरचना (संशोधन के उपरांत में बदलाव)

§  राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग  एक बहु-सदस्यीय संस्था है। इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति (प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा का उप-सभापति, संसद के दोनों सदनों के मुख्य विपक्षी नेता तथा केंद्रीय गृहमंत्री) की सिफारिशों के आधार पर की जाती है।

§  अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्षों या 70 वर्ष की उम्र, जो भी पहले हो, तक होता है। इन्हें इनके पद से केवल तभी हटाया जा सकता है जब उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की जाँच में इन पर दुराचार या असमर्थता के आरोप सिद्ध हो जाएं। इसके अतिरिक्त आयोग में पाँच विशिष्ट विभाग (विधि विभाग, जाँच विभाग, नीति अनुसंधान एवं कार्यक्रम विभाग, प्रशिक्षण विभाग और प्रशासन विभाग) भी होते हैं।

§  राज्य मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा राज्य के मुख्यमंत्री, राज्य के गृह मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष के परामर्श पर की जाती है।

o    इस अधिनियम के अंतर्गत आयोग के अध्यक्ष के रूप में केवल उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ही नियुक्त किया जा सकता था। किंतु संशोधन के पश्चात् अध्यक्ष पद के लिये उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश भी योग्य होंगे।

o    इस अधिनियम में ऐसे दो सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान था जिन्हें मानवाधिकारों के क्षेत्र की व्यापक समझ एवं ज्ञान हो। संशोधन के बाद इस संख्या को बढ़ाकर तीन कर दिया गया है, इसमें कम-से-कम एक महिला सदस्य का होना आवश्यक है।

o    इस अधिनियम के अंतर्गत पूर्व में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC), राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) तथा राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) के अध्यक्ष ही मानवाधिकार आयोग के सदस्य होते थे लेकिन अब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC), बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष तथा दिव्यांगों के लिये मुख्य आयुक्त को भी राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग  का सदस्य नियुक्त किया जाएगा।

§  राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC): संशोधन से पूर्व राज्य मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त किया जाता था लेकिन अब उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश भी राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष बन सकेंगे।

§  कार्यकाल: अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग  तथा राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल पाँच वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु (जो भी पहले पूर्ण हो) होती थी। संशोधन के बाद अब इस कार्यकाल को घटा कर 3 वर्ष कर दिया गया है हालाँकि आयु सीमा पूर्ववत ही है। इसके अतिरिक्त 5 वर्ष की अवधि के लिये राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग  तथा राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष की पुनर्नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया है।

§  शक्तियाँ: अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग  के महासचिव तथा राज्य मानवाधिकार आयोग के सचिव उन्हीं शक्तियों का उपयोग करते थे जो उन्हें सौंपी जाती थी। संशोधन के पश्चात् उपर्युक्त अधिकारी अपने अध्यक्ष के अधीन सभी प्रशासनिक एवं वित्तीय शक्तियों का उपयोग कर सकेंगे यद्यपि इसमें न्यायिक शक्तियाँ शामिल नहीं है।

§  संघशासित क्षेत्र: संशोधन के बाद संघशासित क्षेत्र से संबंधित मामलों को केंद्र सरकार राज्य मानवाधिकार आयोग को प्रदान कर सकती है। किंतु दिल्ली से संबंधित मामले राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग  द्वारा निपटाए जाएँगे।

 

मानवाधिकारों के उल्लंघन के पीड़ितों के लिए आसान और नज़दीकी पहुँच प्रदान करने के उद्देश्य से, राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन 13 सितंबर 1995 में मध्य प्रदेश राज्य में किया गया था। मध्य प्रदेश इस आयोग का गठन करने वाले पहले कुछ राज्यों में शामिल था। 

·         राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन जनवरी 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में किया गया था। इसका उद्देश्य महिलाओं की संवैधानिक और क़ानूनी सुरक्षा को सुनिश्चित करना, उनके लिये विधायी सुझावों की सिफारिश करना, उनकी शिकायतों का निवारण करना तथा महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों में सरकार को सलाह देना है।

महिलाओं के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 (भारत सरकार की 1990 की अधिनियम सं. 20) के अंतर्गत जनवरी 1992 में संवैधानिक निकाय के रूप में निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए की गई थी:

  1. आयोग में होंगे:-

(a) महिलाओं के हित के लिए समर्पित एक अध्यक्ष, जिसे केन्द्र सरकार द्वारा मनोनीत किया जाएगा।

(b) पांच सदस्य, जिन्हें केन्द्र सरकार द्वारा मनोनीत किया जाना है, जो योग्य, एकीकृत और अथायी हों और कानून अथवा विधान, व्यापार संघ, महिलाओं की उद्यमिता प्रबन्धन, महिलाओं के स्वैच्छिक संस्थान (महिला कार्यकर्ताओं को शामिल करते हुए), प्रशासन, आर्थिक विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और समाज कल्याण का अनुभव रहा हो;
बशर्ते कि कम से कम एक सदस्य क्रमश: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से होंगे।

(c) केन्द्र सरकार द्वारा मनोनीत एक मेम्बर-सेक्रेटरी, जो:-

i. प्रबन्धन, संगठनात्मक संरचना अथवा समाजशास्त्रीय गतिविधियों के विशेषज्ञ होंगे, अथवा

ii. एक अधिकारी जो यूनियन के सिविल सर्विस अथवा अखिल भारतीय सर्विस के सदस्य होंगे अथवा जो उपयुक्त अनुभव के साथ यूनियन के अंतर्गत सिविल पोस्ट होल्ड करते है।

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