भारतीय संविधान का भाग -15 भारत निर्वाचन आयोग
भारत निर्वाचन आयोग, जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं
का संचालन करता है।
यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
पृष्ठभूमि
§ भारतीय संविधान
का भाग 15 के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित हैं।
§ भारतीय संविधान के
अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनावों से
संबंधित है जिसमें चुनावों के संचालन के लिये एक आयोग की स्थापना करने की बात कही
गई है।
§ चुनाव आयोग की
स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के
अनुसार की गई थी।
भारत के प्रथम चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन थे।
(वर्तमान में सुनील अरोड़ा मुख्य चुनाव आयुक्त हैं तथा
अशोक लवासा और सुशील चंद्रा चुनाव आयुक्त के पद पर कार्यरत हैं।)
- निर्वाचन आयोग का सचिवालय नई
दिल्ली में स्थित है।
मुख्यालय |
निर्वाचन सदन, अशोक रोड, |
भारतीय संविधान का भाग -15 में चुनावों से संबंधित अनुच्छेद
324 |
चुनाव आयोग में
चुनावों के लिये निहित दायित्व: अधीक्षण, निर्देशन और
नियंत्रण। |
325 |
धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष को मतदाता
सूची में शामिल न करने और इनके आधार पर मतदान के लिये अयोग्य नहीं ठहराने का
प्रावधान। |
326 |
लोकसभा एवं
प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिये निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा। |
327 |
विधायिका
द्वारा चुनाव के संबंध में संसद में कानून बनाने की शक्ति। |
328 |
किसी राज्य के
विधानमंडल को इसके चुनाव के लिये कानून बनाने की शक्ति। |
329 |
चुनावी मामलों
में अदालतों द्वारा हस्तक्षेप करने के लिये बार (BAR) |
निर्वाचन आयोग की
संरचना
§ निर्वाचन आयोग
में मूलतः केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था, लेकिन राष्ट्रपति
की एक अधिसूचना के ज़रिये 16 अक्तूबर, 1989 को इसे तीन
सदस्यीय बना दिया गया।
§ इसके बाद कुछ समय
के लिये इसे एक सदस्यीय आयोग बना दिया गया और 1 अक्तूबर, 1993 को इसका तीन सदस्यीय आयोग वाला स्वरूप फिर से बहाल कर दिया
गया। तब से निर्वाचन आयोग में एक
मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं।
§ निर्वाचन आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है। नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है।
मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 65 साल, जो पहले हो, का होता है जबकि अन्य चुनाव आयुक्तों का
कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 62 साल, जो पहले हो, का होता हैं
§
§ मुख्य निर्वाचन
अधिकारी IAS रैंक का अधिकारी होता है, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा चुनाव
आयुक्तों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति ही करता है।
§ इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (
दोनों में से जो भी पहले हो) तक होता है।
§ इन्हें भारत के सर्वोच्च
न्यायालय के न्यायाधीशों के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है और समान वेतन एवं भत्ते
मिलते हैं।
§ मुख्य चुनाव
आयुक्त को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के
समान ही पद से हटाया जा सकता
§ हटाने की प्रक्रिया
§ उच्च न्यायालयों और
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों, मुख्य चुनाव
आयुक्त, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक को दुर्व्यवहार या पद के
दुरुपयोग का आरोप सिद्ध होने पर या अक्षमता के आधार पर संसद द्वारा अपनाए गए
प्रस्ताव के माध्यम से ही पद से हटाया जा सकता है।
§ निष्कासन के लिये
दो-तिहाई सदस्यों के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है और इसके लिये सदन के कुल
सदस्यों का 50 प्रतिशत से अधिक मतदान होना चाहिये।
§ उपरोक्त पदों
से किसी को हटाने के लिये संविधान में ‘महाभियोग’ शब्द का उपयोग नहीं किया गया है।
§
महाभियोग शब्द का प्रयोग केवल राष्ट्रपति को हटाने के
लिये किया जाता है जिसके लिये संसद के दोनों सदनों में उपस्थित सदस्यों की
कुल संख्या के दो-तिहाई सदस्यों के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है और यह
प्रक्रिया किसी अन्य मामले में नहीं अपनाई जाती।
निर्वाचन आयोग के
कार्य
§ चुनाव आयोग भारत
में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव की संपूर्ण प्रक्रिया
का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करता है।
§ इसका सबसे
महत्त्वपूर्ण कार्य आम चुनाव या उप-चुनाव कराने के लिये समय-समय पर चुनाव
कार्यक्रम तय करना है।
§ यह निर्वाचक
नामावली (Voter List) तैयार करता है तथा मतदाता पहचान पत्र (EPIC) जारी करता है।
§ यह मतदान एवं
मतगणना केंद्रों के लिये स्थान, मतदाताओं के लिये
मतदान केंद्र तय करना, मतदान एवं मतगणना केंद्रों में सभी प्रकार की आवश्यक
व्यवस्थाएँ और अन्य संबद्ध कार्यों का प्रबंधन करता है।
§ यह राजनीतिक दलों
को मान्यता प्रदान करता है उनसे संबंधित विवादों को निपटाने के साथ ही उन्हें
चुनाव चिह्न आवंटित करता है।
§ निर्वाचन के बाद
अयोग्य ठहराए जाने के मामले में आयोग के पास संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों
की बैठक हेतु सलाहकार क्षेत्राधिकार भी है।
§ यह राजनीतिक दलों
और उम्मीदवारों के लिये चुनाव में ‘आदर्श आचार
संहिता’ जारी करता है, ताकि कोई अनुचित
कार्य न करे या सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग न किया जाए।
§ यह सभी राजनीतिक
दलों के लिये प्रति उम्मीदवार चुनाव अभियान खर्च की सीमा निर्धारित करता है और
उसकी निगरानी भी करता है।
§
§ भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) का महत्त्व
§ यह वर्ष 1952 से राष्ट्रीय और राज्य स्तर के चुनावों का सफलतापूर्वक
संचालन कर रहा है। मतदान में लोगों की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये सक्रिय
भूमिका निभाता है।
§ राजनीतिक दलों को
अनुशासित करने का कार्य करता है।
§ संविधान में
निहित मूल्यों को मानता है अर्थात चुनाव में समानता, निष्पक्षता, स्वतंत्रता स्थापित करता है।
§ विश्वसनीयता, निष्पक्षता, पारदर्शिता, अखंडता, जवाबदेही, स्वायत्तता और कुशलता के उच्चतम स्तर के साथ चुनाव
आयोजित/संचालित करता है।
§ मतदाता-केंद्रित
और मतदाता-अनुकूल वातावरण की चुनावी प्रक्रिया में सभी पात्र नागरिकों की भागीदारी
सुनिश्चित करता है।
§ चुनावी प्रक्रिया
में राजनीतिक दलों और सभी हितधारकों के साथ संलग्न रहता है।
§ हितधारकों, मतदाताओं, राजनीतिक दलों, चुनाव अधिकारियों, उम्मीदवारों के
बीच चुनावी प्रक्रिया और चुनावी शासन के बारे में जागरूकता पैदा करता है तथा देश
की चुनाव प्रणाली के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ाने और उसे मज़बूती प्रदान करने का
कार्य करता है।
निर्वाचन आयोग के
समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
§ भारत में वर्षों
से राजनीति में हिंसा और चुनावी दुर्भावनाओं के साथ कालेधन और आपराधिक तत्त्वों का
बोलबाला बढ़ा है और इसके परिणामस्वरूप राजनीति का अपराधीकरण हुआ है। इनसे निपटना
निर्वाचन आयोग के लिये एक बड़ी चुनौती है।
§ राज्यों की
सरकारों द्वारा सत्ता का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जाता है, जिसके तहत कई बार चुनावों से पहले बड़े पैमाने पर प्रमुख
पदों पर तैनात योग्य अधिकारियों का स्थानांतरण कर दिया जाता है।
§ चुनाव के लिये
सरकारी वाहनों और भवनों का उपयोग कर निर्वाचन आयोग की आदर्श आचार संहिता का
उल्लंघन किया जाता है।
§ भारत में निर्वाचन
आयोग के पास राजनीतिक दलों को विनियमित करने के लिये पर्याप्त शक्तियाँ नहीं हैं।
§ भारत में किसी
राजनीतिक दल के आंतरिक लोकतंत्र और पार्टी के वित्तीय विनियमन को सुनिश्चित करने
की भी कोई शक्ति निर्वाचन आयोग के पास नहीं है।
§ हालिया वर्षों
में निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं और यह धारणा ज़ोर
पकड़ रही है कि चुनाव आयोग कार्यपालिका के दबाव में काम कर रहा है।
§ मुख्य चुनाव
आयुक्त और अन्य दो आयुक्तों के चुनाव में प्रमुख संस्थागत कमियों में से एक है कम
पारदर्शिता का होना, क्योंकि इनका चयन मौज़ूदा सरकार की पसंद पर आधारित
होता है।
§ इसके अलावा EVM में खराबी, हैक होने और वोट
दर्ज न होने जैसे आरोपों से भी निर्वाचन आयोग के प्रति आम जनता के विश्वास में कमी
आती है।
§ वर्तमान समय में
सत्ताधारी दल के पक्ष में निचले स्तर पर नौकरशाही की मिलीभगत के खिलाफ सतर्क रहने
की आयोग के सामने बड़ी चुनौती है।
§ आयोग के जनादेश
और जनादेश का समर्थन करने वाली प्रक्रियाओं को और अधिक कानूनी समर्थन प्रदान करने
की आवश्यकता है।
§ नैतिकता
सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि सक्षम और योग्य व्यक्ति उच्च पदों का दायित्व
संभालें।
§ द्वितीय
प्रशासनिक सुधार आयोग
निर्वाचन आयोग की
निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में
सिफारिश की गई थी कि लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में
विपक्ष के नेता, कानून मंत्री और राज्यसभा के उपाध्यक्ष के साथ
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बना कॉलेजियम मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों
की नियुक्ति के लिये राष्ट्रपति के समक्ष नाम प्रस्तावित करे।
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